सरल भगवत गीता (Saral Bhagavad Gita)
भगवद गीता को अभी तक एक धर्म ग्रंथ के रूप में देखा गया है जोकि हर सनातन धर्म को मानने वाले के घर में लाल कपड़े में लपेटकर बस मंदिर के किसी कोने में रख दी जाती है, जिसके लिए यह मान्यता प्रचलित है कि जब कोई व्यक्ति अपने आखिरी समय में होता है अर्थात मृत्यु के निकट होता है और यदि कोई उस व्यक्ति को भगवदगीता का 18 वा अध्याय सुना दे तो उसे मोक्ष मिलता है। और इसे इतना पवित्र माना गया है कि अदालत में कानूनी निर्णय के समय साक्ष्य से इस पर हाथ रखकर कसम भी दिलवाई जाती है।
लेकिन गोलोक एक्सप्रेस ने भगवदगीता को एक नए परिपेक्ष्य में देखने का नजरिया दिया। भगवदगीता एक धार्मिक ग्रंथ तो है ही साथ ही साथ वह एक मनोविज्ञान की किताब भी हम कह सकते हैं। और भगवान श्री कृष्ण सबसे बड़े मनोवैज्ञानिक हैं ।एक मनोवैज्ञानिक चिकित्सक जिस तरह से अपने मरीज से बात करके और उसके दिल की बात और जिज्ञासाओं को सुनकर फिर उसे समझाता है या उत्तर देता है, उसी तरह भगवान श्रीकृष्ण भी युद्ध के मैदान में अर्जुन के दिल की बात सुनते हैं, उनके सभी प्रश्नों के उत्तर और जिज्ञासाओं को शांत करते हैं, उन्हें बहुत सहनशीलता से सुनते हैं। कृष्ण तो स्वयं अखिल कोटि ब्रह्मांड के स्वामी हैं, उनके लिए अर्जुन जी को समझाना कोई मुश्किल काम नहीं था। वह चाहते तो किसी भी चमत्कार से अर्जुन जी को भगवद ज्ञान दे सकते थे लेकिन उन्होंने अर्जुन की सभी शंकाओं को दूर किया और सभी समस्याओं का समाधान भी किया। क्योंकि कृष्ण जानते थे कि एक साधारण जीव के मन में किस किस तरह की शंकाएं उत्पन्न हो सकती हैं और अर्जुन यहां पर हम सब साधारण जीवो का ही प्रतिनिधित्व कर रहे हैं ।
एक बात ध्यान देने योग्य यह भी है कि कृष्ण ने भगवद ज्ञान देने के लिए युद्ध का मैदान ही क्यों चुना और पांचों पांडवों में से अर्जुन को ही क्यों चुना। क्योंकि आज कलयुग के समय में हम सब इतने व्यस्त हो गए हैं कि थोड़ा ठहर कर चिंतन, मनन और भगवान का स्मरण ही भूल गए। और उस समय का युद्ध दो सेनाओं के बीच में था लेकिन आज वह दोनों सेनाएं हमारे अंदर ही हैं और हमारे अंदर भी सकारात्मकता और नकारात्मकता का सतत् युद्ध चलता ही रहता है और कृष्ण ने इसके माध्यम से यह संदेश दिया है कि अपने व्यस्त जीवन शैली में से कुछ समय अपने आपको जानने के लिए, चिंतन- मनन के लिए, भगवान और भगवद ज्ञान के लिए निकालना जरूरी है ।
गोलोक एक्सप्रेस संस्था में भगवदगीता के गूढ़ ज्ञान को बहुत ही सरल तरीके से आज के आधुनिक समय में ,अपनी आधुनिक जीवन शैली में इस ज्ञान को किस तरह से प्रयोग करें ,यह बताया जाता है। ताकि आज का कलयुगी जीव अपने कर्म क्षेत्र के युद्ध में उतरे तो ,वह जीत सके और अपने जीवन को सरल और श्रेष्ठतम जी सके क्योंकि भगवदगीता हमें जीवन जीने की कला सिखाती है और गोलोक एक्सप्रेस में सभी साधकों में इसी कला को उभारा और निखारा जाता है। भगवदगीता के ज्ञान को लेकर जीवन को और सुगम बनाने के लिए गोलोक एक्सप्रेस में कुछ मॉडल तैयार किए गए हैं और यह मॉडल जीवन की नींव को मजबूत करने के लिए हैं ।
जैसे किसी इमारत को बनाने से पहले उसकी नींव तैयार की जाती है उसी तरह एक श्रेष्ठ जीवन जीने के लिए भी उसकी नींव मजबूत होना बहुत जरूरी है। गोलोक एक्सप्रेस का एबीसीडी मॉडल इस नींव को मजबूत करने का एक स्तंभ है। इस मॉडल में जीवन को चार भागों में विभाजित करके यह सिखाया जाता है कि किस तरह से हर एक भाग को प्राथमिकता देकर हम अपने जीवन को सरल और सुगम बना सकते हैं ।
जीवन को और भी अच्छे ढंग से जीने के लिए अच्छे स्वास्थ्य का होना भी बहुत जरूरी है। अच्छा स्वास्थ्य का अर्थ केवल शारीरिक स्वास्थ्य से से ही नहीं, बल्कि मानसिक स्वास्थ्य, पारिवारिक स्वास्थ्य, अध्यात्मिक स्वास्थ्य और आर्थिक स्वास्थ्य से भी है। इसका अर्थ है संपूर्ण स्वास्थ्य। जब हम पूर्ण रूप से स्वस्थ होंगे तभी हम संपूर्ण खुशी को अनुभव कर सकेंगे और इस कला को हम गोलोक एक्सप्रेस के संपूर्ण स्वास्थ्य एवं संपूर्ण खुशी मॉडल को समझकर सीख सकते हैं ।
अध्यात्मिक स्वास्थ्य को अच्छा करने के लिए हमें चार घटकों पर काम करना पड़ेगा । सत्संग, साधना, सेवा ,सदाचार ।और जब हम इन चारों घटकों पर अपने आध्यात्मिक गुरु की सलाह से काम करते हैं तो जीवन पर चमत्कारिक रूप से प्रभाव पड़ता है और हम एक श्रेष्ठ जीवन की नींव रख पाते हैं ।
गोलोक एक्सप्रेस में हजारों ,लाखों साधकों ने इन मॉडल को समझकर अपने जीवन में उतारा और इनके सकारात्मक प्रभावों को अनुभव किया है।
वैसे तो हम एक श्रेष्ठ जीवन के सिर्फ कल्पना ही कर सकते हैं परंतु गोलोक एक्सप्रेस के इन मॉडल को समझकर हम अपने जीवन की यात्रा को सरल, सुगम और प्रसन्न चित्त बना सकते हैं।