समग्र शिक्षा
शिक्षा एक बहुआयामी प्रक्रिया है, जिसके अन्तर्गत व्यक्ति जन्म से लेकर मृत्युपर्यन्त कुछ न कुछ सीखता रहता है। शिक्षा के द्वारा व्यक्ति के अंदर छिपी बहुमुखी प्रतिभाओं को उजागर करने का कार्य किया जाता है, जिससे हर कोई स्वयं को बेहतर से बेहतरीन बना सके, दूसरे अर्थ में कहें तो मानव को सही अर्थ में मानव बनाने का काम शिक्षा के द्वारा किया जाता है।
जब समस्त विश्व अज्ञान के गर्त में डूबा हुआ था, तब भारत में वैदिक- साहित्य के अन्तर्गत ज्ञान की स्वर्णिम निधि वेद, उपनिषद, पुराण, स्मृति, रामायण, महाभारत जैसे महान ग्रन्थ रचे जा रहे थे, ये सारी बातें भारत को विश्व गुरु की श्रेणी में लाकर खड़ा कर देती है। प्राचीन समय में गुरुकुल पद्धति से शिक्षा दी जाती थी, जो बालक के सर्वाङ्गीण विकास पर बल देती थी, पर धीरे-धीरे समय बदला, युग बदले व शिक्षा का स्वरूप भी बदलता गया। आज शिक्षा पूरी तरह से व्यावसायीकृत हो चुकी है, जो मानव जीवन के सभी पक्षों यानि आध्यात्मिक, बौद्धिक ,शारीरिक, पारिवारिक व आर्थिक सभी का पूरा ध्यान नहीं रख पाती। केवल शिक्षा का उद्देश्य व्यवसाय करके धन अर्जित करना है, ऐसे में जरुरत है, प्राचीन शिक्षा प्रणाली की जो मानव के सम्पूर्ण विकास पर बल देती थी। इसी सन्दर्भ में हम महान ग्रन्थों व महान विभूतियों का क्या कहना है यह जानते हैं।
1. ऋग्वेद → शिक्षा आत्मनिर्भर व निस्वार्थ होना सिखाती है।
2. उपनिषद् – शिक्षा का प्रमुख उद्देश्य मुक्ति प्राप्त करना है।
3. गीता – शिक्षा हमे बुद्धिमान बनाती है।
4 विवेकानन्द →शिक्षा से हमारी गरिमा को पूर्णता मिलती है।
5. शंकराचार्य – शिक्षा आत्मसाक्षात्कार कराती है।
6. गांधीजी – शिक्षा जीवन के हर पहलू का विकास करती हैं।
7. रविन्द्रनाथ टैगोर – अधिक शिक्षित होने से जीवन की सारी समस्याएँ हल होती है।
8. अरविन्द – शिक्षा निस्वार्थ भाव से अपना व समाज का भला सिखाती है।
उपरोक्त जितनी भी परिभाषाएँ बनाई गई हैं, वे कहीं भी आज के सन्दर्भ में सटीक व सार्थक नहीं बैठती है। ये सब परिभाषाएँ मनुष्य जीवन के हर पहलू का विकास करती हैं, जो आज की शिक्षा में कहीं भी दिखाई नहीं देती। आज की शिक्षा प्रणाली मुख्यतया व्यवसाय को केंद्र में रखकर निर्मित की गई है, जो केवल व्यक्ति को नौकरी दे सकती है, बाबू व अफसर बना सकती है, पर अच्छा मानव कैसे बनना है, ये नहीं सिखाती है। कहा जाए तो आज की शिक्षा प्रणाली अपूर्ण है, संस्कार शून्य है।
वर्तमान युग में शिक्षा प्रणाली में समग्र शिक्षा को जोड़ना अत्यन्त आवश्यक है। क्योंकि आज के भौतिकवादी युग में आर्थिक पक्ष को बहुत महत्व दिया जा रहा है। सब कुछ पैसा है, यह सोचकर सब पैसे के पीछे भाग रहे हैं। संस्कारों का कोई महत्व नहीं रह गया है। इस कारण तनाव, अवसाद, क्रोध, अहं , चिड़चिड़ापन आदि दुर्गुण बढ़ते जा रहे हैं। सरकार की तरफ से शिक्षा प्रणाली में नैतिक शिक्षा को जोड़ा भी गया है, परंतु वह पूर्ण प्रयास नहीं है।
गोलोक एक्सप्रेस को शत-शत नमन है, जिसने इस दिशा में बेहतरीन कदम उठाए हैं। गोलोक स्वसप्रेस के संस्थापक डॉ. निखिल गुप्ता जीने समग्र शिक्षा पर आधारित विडियोज की एक सीरीज बनाई है, जो समग्र शिक्षा पर आधारित है। ये सीरीज़ शिक्षा की अपूर्णता को पूर्णता में परिवर्तित करने में सक्षम है। ये सीरीज यू ट्यूब पर उपलब्ध है। निखिल जी का कहना है कि बालक की प्रारंभिक शिक्षा घर से ही प्रारंभ होती है, इन्हें घर से संस्कार युक्त शिक्षा मिलनी चाहिए। ये कार्य माता-पिता, दादा-दादी, नाना-नानी अच्छी तरह से कर सकते हैं। गोलोक एक्सप्रेस में निखिल जी द्वारा बनाया गया सम्पूर्ण स्वास्थ्य और सम्पूर्ण खुशी एक ऐसा बेहतरीन अनुभवात्मक मॉडल है, जो पूरी तरह समग्र शिक्षा पर आधारित माना जा सकता है। इसके पाँचो घटकों में समभाव बना कर जीवन जीने से जीवन का सम्पूर्ण विकास संभव हो सकता है। इसमे सबसे शीर्षतम स्तर पर आध्यात्मिक स्वास्थ्य को रखा गया है। जब हम आध्यात्मिकता के माध्यम से प्रभु से जुड़ते हैं, तो जीवन के बाकि घटक जैसे मानसिक स्वास्थ्य, शारीरिक स्वास्थ्य, पारिवारिक स्वास्थ्य और आर्थिक स्वास्थ्य स्वयं सुधरने लगते हैं और यही हम सब चाहते हैं। इसके अतिरिक्त और भी बहुत से विडियोज निखिल जी द्वारा बनाए गए हैं, जो जीवन में आने वाली बहुतायत समस्याओं के निदान में सहायक सिद्ध हो सकते हैं और वर्तमान समय में हमे विभिन्न नकारात्मकताओ से हटाकर सकारात्मकता के मार्ग पर अग्रसर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते है। गोलोक एक्सप्रेस का बहुत-बहुत धन्यवाद है, जो इस दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। यहां समग्र शिक्षा पर बहुत सुंदर सत्संग आयोजित किए जाते हैं, जिनसे अनेकों लोग लाभान्वित होकर सुंदर जीवन जी रहे हैं, हरि-हरि बोल |