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Happiness Model

सम्पूर्ण स्वास्थ और सम्पूर्ण खुशी का मॉडल (complte health & Happiness model)

            यदि हम एक सर्वे करें और लोगों से पूछें कि वह सब जीवन में क्या चाहते हैं, तो सबका एक ही उत्तर होगा -सुख, खुशी , शांति और स्वास्थ्य । और सब लोग जीवन में इतनी भागदौड़ कर रहे हैं वह सब खुशी के लिए ही तो है। लेकिन इतनी भागदौड़ के बाद खुशी मिलती भी है तो बहुत क्षणिक होती है जो कि कुछ समय बाद खत्म हो जाती है ।और फिर अगली खुशी के लिए भागदौड़ शुरू हो जाती है। लेकिन जीवन का खालीपन फिर भी खत्म ही नहीं होता और इसके परिणाम स्वरूप मन की शांति भी खत्म हो जाती है ,संतुष्टि भी नहीं मिलती और शरीर का स्वास्थ्य भी खराब हो जाता है ।और एक उम्र के बाद इंसान को लगता है कि जीवन की भागमभाग तो मृगतृष्णा के समान है ,जो कभी मिलती नहीं है बल्कि जितना उसके पीछे भागते हैं वह आगे आगे चली जाती है ।और हाथ लगती है- चिंताएं ,तनाव, क्रोध और निराशा।

                   ऐसे में हमें चाहिए कि हम इन बातों पर गहराई से ध्यान देना शुरू करें और पता करें कि कमी कहां पर है ।अभी तक हम खुशी और स्वास्थ्य को सामाजिक स्वीकृति के तल पर सोचते आए हैं। भौतिक सामाजिक सोच तो यही है कि खुशी सिर्फ चीजों से या पैसों से मिल सकती है और स्वास्थ्य केवल शरीर का ही होता है ।लेकिन गोलोक एक्सप्रेस ने खुशी और स्वास्थ्य को अलग ढंग से देखना सिखाया ।गोलोक एक्सप्रेस में हमारे मेंटर्स के द्वारा यह सिखाया जाता है कि  खुशी तो मन की स्थिति होती है ,जो हमारे अंदर ही है। खुशी को रिश्तो से, पैसों से और चीजों से नहीं पाया जा सकता ।इसे तो अपने अंदर ही ढूंढना होता है। दुनिया में ऐसी कोई भी चीज नहीं जो हमें दुखी कर सके या खुशी दे सके। जब तक हम स्वयं दुखी या सुखी ना होना चाहे। और हम कितने खुश हैं या कितने दुखी हैं इसका असर सीधा हमारे स्वास्थ्य पर पड़ता है ।यहां पर स्वास्थ्य का अर्थ शारीरिक स्वास्थ्य भी हो सकता है और मानसिक स्वास्थ्य भी हो सकता है ।क्योंकि जैसी हमारी मन की स्थिति होती है उसका सीधा असर हमारे शरीर के स्वास्थ्य पर पड़ता है।
                     गोलोक एक्सप्रेस में हमें शरीर ,मन और आत्मा का संबंध हमारी खुशी से और हमारे स्वास्थ्य से किस प्रकार है, यह बहुत ही विस्तार से 5 कारकों के द्वारा समझाया गया है ।

   1 आध्यात्मिक स्वास्थ्य 

                       आध्यात्मिक स्वास्थ्य एक बहुत ही असाधारण सा विषय है। ज्यादातर लोगों ने तो इसके बारे में सोचना तो दूर सुना भी नहीं होगा । वास्तव में यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण घटक है हमारे स्वास्थ्य का। अध्यात्म मतलब – आत्मा का ज्ञान । भगवद गीता में भी भगवान श्री कृष्ण ने आत्मा के ज्ञान और विज्ञान के बारे में बताया है ।असल में हम सब का शरीर जो ऊपर से दिखता है यह तो केवल पंचमहाभूतों से बना हुआ भौतिक शरीर है ।असल में जो इसके अंदर चेतना है जिसे हम आत्मा भी कह देते हैं वही इस शरीर में प्राण भरती  है ,तो इस हिसाब से देखें तो शरीर से ज्यादा महत्वपूर्ण तो आत्मा हुई और जिसके स्वास्थ्य का हम बिल्कुल भी ध्यान नहीं रखते ।

                 जिस तरह से शरीर को ताकत और ऊर्जा देने के लिए भोजन जरूरी है उसी तरह आत्मा को भी भोजन देना जरूरी है ।और आत्मा का भोजन है -प्रभु का नाम ।क्योंकि आत्मा उस परमात्मा का ही अंश होती है ।इसे एक उदाहरण से समझे तो हमारा शरीर एक मोबाइल फोन है और आत्मा उसकी बैटरी है ।परमात्मा फोन के चार्जर हैं। तो मोबाइल फोन तभी काम करेगा जब उसकी बैटरी पूरी चार्ज होगी और चार्ज करने के लिए हमें चारजर चाहिए ।यदि हमारे पास फोन भी है और चार्जर भी है लेकिन फोन और चार्जर को जोड़ने वाली तार नहीं है तो फोन चार्ज नहीं हो पाएगा ।और दोनों को जोड़ने वाली तार है -आध्यात्मिक या भक्ति पूर्ण क्रियाएं ।जैसे – सत्संग, कीरतन ,नाम जप ,भजन ,शास्त्रों का अध्ययन ,भोग लगाना ,व्रत रखना ,आरती करना,  तीर्थ यात्रा करना आदि ।इन सब क्रियाओं को करने से धीरे-धीरे हमारा मन प्रभु भक्ति में लग जाता है। और प्रभु की भक्ति से मन लगना अर्थात आत्मा का परमात्मा से संबंध जोड़ना। जिससे हमारे अध्यात्मिक स्वास्थ्य में सुधार होता है। 

2  मानसिक स्वास्थ्य 

                      आज के आधुनिक युग में खराब मानसिक स्वास्थ्य एक बहुत बड़ी समस्या है ।आज की आधुनिक जीवन शैली में सभी आधुनिक उपकरण और सुख सुविधाएं उपलब्ध होने के बाद भी सब लोग तनावग्रस्त और अवसाद में रहते हैं। इसका सीधा सा कारण यह है कि हमारा आध्यात्मिक स्वास्थ्य ठीक न होना और दूसरा कारण हमारी मन और बुद्धि के बीच संतुलन ना होना है ।      

                मन और बुद्धि हमारे सूक्ष्म शरीर के दो अंग है। भावनाओं का विभाग मन के अधीन होता है और बुद्धि का काम है तर्क और विवेकशील सोच देना। प्राय: मन चंचल और अस्थिर होता है और बुद्धि निश्चयआत्मक होती है ।

                 जब हम मन और बुद्धि के बीच सही तालमेल नहीं बिठा पाते तो हमारा मानसिक स्वास्थ्य बिगड़ जाता है ।आजकल हम मन के दास हो गए हैं और मन का स्वभाव यह है कि मन हमें हमेशा नीचे की ओर यानी नकारात्मकता की ओर खींचता है। ज्यादातर मन जिद्दी बच्चे की तरह काम करता है और बुद्धि की सुनता ही नहीं ।ऐसे में हमारी इच्छा शक्ति कमजोर हो जाती है, आलस्य आ जाता है और नकारात्मक विचार सकारात्मकता पर हावी हो जाते हैं ।हम बहुत कुछ सोचने लगते हैं ।और ज्यादा सोचना एक बहुत बड़ी समस्या है ।जिस पर आमतौर पर कोई ध्यान नहीं देता ।इस समस्या में हम ना शांत हो पाते हैं ना ही स्थिर रह पाते हैं क्योंकि हम कोरी कल्पनाओं में ही डूबे रहते हैं ।कभी भविष्य की कल्पनाएं ,तो कभी भूत की बातें ।और यह हम समझ नहीं पाते कि इसका असर हमारे दिमाग पर, मन पर और सबसे ज्यादा शरीर पर पड़ता है।

                      इसका सीधा कारण यह है कि हमारा मन अनियंत्रित है , जिससे जीवन अस्त व्यस्त सा हो जाता है ।

                इसका सरल सा उपाय यह है कि हमें अध्यात्मिक गतिविधियों में थोड़ा समय बिताना चाहिए ।जिसके परिणाम स्वरूप हमारी बुद्धि शुद्ध होगी ,मन थोड़ा अनुशासित होगा और अनुशासन में आने से मन शांत और स्थिर होने लगेगा ।निरंतर सत्संग ,साधना और सेवा करने से इंद्रियों को नियंत्रित करने में मदद मिलती है ।जिससे सदाचार स्वत: ही हमारे व्यक्तित्व का हिस्सा बन जाता है जो कि अच्छे मानसिक स्वास्थ्य की पहचान है ।

3 शारीरिक स्वास्थ्य 

                       आज के आधुनिक दौर में हम बहुत ही अस्त-व्यस्त सा जीवन जी रहे हैं ।ना खाने पीने का सही समय है और ना ही सोने जागने का। ऐसे में शारीरिक स्वास्थ्य तो खराब होना ही है। जीवन में संतुलन कहीं भी देखने को नहीं मिलता। जैसे कि बहुत ज्यादा खाना या बहुत कम खाना, बहुत ज्यादा सोना या बहुत कम सोना, शरीर से बहुत ज्यादा काम ना लेना , तामसी व राजसी भोजन करना, व्यायाम आदि न करना ,नशीले पदार्थों का सेवन करना ,बहुत ज्यादा टीवी या सोशल मीडिया पर समय लगाना ।और जिसके परिणाम स्वरूप शरीर अस्वस्थ हो जाता है और जब हम शरीर से स्वस्थ नहीं होते तो इसका सीधा असर हमारे मन और बुद्धि पर पड़ता है।

                      जब हमारा अध्यात्मिक स्वास्थ्य और मानसिक स्वास्थ्य ठीक होते हैं तो 50% शारीरिक बीमारियां तो हमारी ऐसे ही ठीक हो जाती हैं ।और बाकी की 50% अस्वस्थता स्वस्थ और अनुशासित दिनचर्या से ,व्यायाम और सैर  करने से, प्रकृति के बीच समय बिताने से, अधिक पानी पीने से,फल सब्जियों का अधिक सेवन करने से और सबसे महत्वपूर्ण सात्विक भोजन करने से ठीक हो सकती हैं ।इन सब चीजों का हमारे शरीर और मन पर बहुत ही सकारात्मक प्रभाव पड़ता है ।जैसा कि कहा भी गया है :जैसा अन्न वैसा मन ।

4 पारिवारिक स्वास्थ्य 

                       पारिवारिक स्वास्थ्य से अभिप्राय परिवार के सदस्यों के आपसी संबंधों से है।जब हम हर तरह से आंतरिक शांति को महसूस करते हैं, मन खुश होता है और मन प्रेम से भरा होता है तो उसका प्रभाव हमारे निकट रिश्तो पर भी पड़ता है ।जब परिवार के सभी सदस्य अध्यात्मिक होते हैं तो सब की बातों का विषय समान हो जाता है। परिवार में सभी सदस्य एक दूसरे की बातों को महत्व देते हैं, और एक दूसरे की बातों को अच्छे से सुनते भी हैं और समझते भी हैं ।

                और जब अध्यात्मिक और मानसिक स्वास्थ्य ठीक होता है तो अहंकार भी कम हो जाता है। और हम सहजता से माफ कर पाते हैं और गलती होने पर माफी मांगने की हिम्मत भी आ जाती है। और सबसे महत्वपूर्ण सहनशीलता और धैर्य बढ़ते हैं जो कि पारिवारिक स्वास्थ्य को अच्छा रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं ।

5 आर्थिक स्वास्थ्य 

                      यह सच है कि धन संपत्ति का होना जीवन निर्वाह के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है ।परंतु यह सोच कि धन ही सब कुछ है यह गलत है। आज के युग की विडंबना भी यही है कि लोगों ने हर चीज, हर रिश्ते से ऊपर पैसे को ही रखा हुआ है ।और पैसा कमाने की दौड़ में इतने व्यस्त हो गए हैं कि बाकी सब कुछ भूल गए हैं ।हर व्यक्ति ज्यादा से ज्यादा पैसा कमाना चाहता है ।फिर चाहे वो नैतिकता से कमाए या अनैतिक तरीकों से ।

                    और जब बहुत धन इकट्ठा हो जाता है तो उसे इंद्रिय भोग विषयों पर खर्च करता है। आजकल सब लोग मनोरंजन के नाम पर बहुत सा पैसा और समय केवल विनाशकारी गतिविधियों में खर्च कर देते हैं ।और परिणाम स्वरूप दिखावे और आगे बढ़ने की दौड़ में आर्थिक स्वास्थ्य बिगड़ जाता है।

               जबकि सत्य तो यह है कि हमारे पास धन उतना ही होना चाहिए जितना कि खाने में नमक। जिस तरह से खाने में यदि नमक ज्यादा हो तो खाना कड़वा हो जाता है और नमक कम हो तो खाने का स्वाद नहीं आता। उसी तरह से धन भी उतना ही होना चाहिए।

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