सरल – दोहावली
दोहे काव्य शास्त्र की बहुत पुरानी पद्य स्वरूप स्वतंत्र छंद रचना है। दोहों का प्रयोग छठी शताब्दी ईस्वी पूर्व की शुरुआत से उत्तर भारत के कवियों व सन्तों ने किया। हिंदी के दोहे ज्ञान के अथाह भंडार है, जो आज के समय में भी इतने ही प्रासंगिक हैं, जितने उस समय थे। दोहे चार चरणों व दो पंक्तियों में निबद्ध लययुक्त गागर में सागर भरने वाली अनुपम काव्य रचना है।
दोहे उस समय के समाज का प्रतिबिम्ब प्रदर्शित करते हैं, जब समाज में विदेशी शक्तियों का आधिपत्य हो चुका था, समाज अधर्म के गर्त में गिरता जा रहा था, और धर्म का नित्य प्रति पतन हो रहा था। तब प्रभु की प्रेरणा पाकर सन्त, महात्माओं, विचारकों व भक्तों ने शास्त्रों की गूढ़तम न्यायसंगत बातों को आम बोल की भाषा में सामान्य जन को बताना प्रारंभ किया, और इसका लोगों पर गहरा प्रभाव पड़ा, क्योंकि ये सन्त महात्मा कोई और नहीं अपितु प्रभु के द्वारा धरती को अधर्म से बचाने के लिए उतारी दिव्य आत्माएँ थी। इस समय के महान सन्तों में कबीरदास, तुलसीदास, रहीम जी का नाम प्रमुखता से लिया जाता है, कबीरदास जी स्वयं भक्त प्रहलाद का ही रूप थे। तुलसी दास जी भी आदिकाव्य रामायण के रचयिता महर्षि वाल्मीकि का ही रूप थे, जिन्होंने रामचरित मानस को जनसामान्य की अवधि भाषा में लोगों के सामने रखा। महान विभूतियों द्वारा रची गई थे लयबद्ध पंक्तियाँ आज भी सांसारिक जन को इतना ही प्रभावित करती हैं, जितना पहले करती थी। वर्तमान युग में मानव सांसारिक चकाचौंध से बुरी तरह ग्रसित हो चुका है, कि अपनी भारतीय शाश्वत सनातन संस्कृति से दूर होता चला जा रहा है, ऐसे में महान महान सन्तों द्वारा रचित दोहे भारतीय संस्कृति के पुनरुत्थान में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
दिव्य व्यापक विचारों वाला कृष्ण-भक्ति का प्रचार- प्रसार करने वाला गोलोक एक्सप्रेस ग्रुप इस दिशा में महत्वपूर्ण पहल कर रहा। यहाँ यूट्यूब पर सरल दोहावलि पर सत्संग प्रारंभ करवाए गए हैं, दोहों की आध्यात्मिक स्तर पर शास्त्र ग्रन्थों के अनुसार सुन्दर विवेचना प्रस्तुत की जाती है, जिससे साधारण जन भी उसमे निहित शिक्षाओं को समझकर उन्हें अपने जीवन में उतार सकता है। गोलोक एक्सप्रेस अपने इस महानतम प्रयास के द्वारा इन सन्तजनों को श्रद्धा सुमन अर्पित करना चाहता है।
इन दोहों के महत्व पर चर्चा करते हुए हम कह सकते हैं की भारतीय सनातन धर्म व संस्कृति को पुनर्जीवित करने में इनका महत्वपूर्ण योगदान है। ये परमात्मा से भूला रिश्ता हमें याद दिलाते हैं, वसुधैव कुटुम्बकम की भावना जागृत करते हैं। इनके अनुसार सभी धर्म एक ही प्रभु की तरफ ले जाते हैं।
दोहों की भाषा अत्यन्त सरल व सटीक होती है, जहाँ शास्त्र के निचोड़ के रूप में दिव्य ज्ञान प्रभु भक्तों द्वारा दिया जाता है। समाज में नैतिकता, दया, सहानुभूति प्रेम, विनम्रता, क्षमा, आदि दिव्य गुणों का पाठ इन दोहों के से माध्यम से पढ़ाया जाता है। अत्यन्त ज्ञान के अथाह सागर ये दोहे सन्तों के अपने अनुभव के आधार पर सत्य को व्यक्त करने का एक सुंदर तरीका है। हमे इन दिव्य शिक्षाओं को अपने जीवन में उतारकर उनपर अमल करना चाहिए और प्रचार प्रसार भी करना चाहिए। सनातन धर्म शाश्वत है, सदा एक सा रहेगा, परंतु प्रचार प्रसार का तरीका बदल सकता है, भाषा बदल सकती है, लेकिन इन दोहों के माध्यम से संस्कृति व संस्कारों की गहरी जड़े मज़बूती से समाज को बांधे रख सकती है। धन्य है, गोलोक एक्सप्रेस दिव्य ग्रुप जो निखिल जी के दिशा-निर्देश में एक अनोखी पहल करने में सक्षम हो रहा है। कोटि-कोटि नमन है- गोलोक एक्सप्रेस के सभी सीनियर मैन्टर्स को ।
हरी हरी बोल।।