एबीसीडी मॉडल (ABCD Model)
एक छोटा बच्चा जब स्कूल जाना शुरु करता है तो उसे ABCD सिखाई जाती है । जिससे कि उसकी शिक्षा की नींव रखी जाती है लेकिन यह हमारा जीवन तो अपने आप में ही एक स्कूल है। यहां हम अपने सुखद और दुखद अनुभवों के मिश्रण से बहुत कुछ सीखते हैं। लेकिन जीवन को सुखद ढंग से सरल, सुगम और चिंता रहित होकर बिना किसी अवसाद के किस तरह जीना है, यह हमें कहीं भी सिखाया नहीं जाता। गोलोक एक्सप्रेस का एबीसीडी मॉडल हमें एक श्रेष्ठ जीवन की एबीसीडी सिखाता है अर्थात आज की आधुनिक जीवन शैली में इतने व्यस्त रहते हुए भी हम अपने कर्मों को इस प्रकार करें कि हमारा आत्मिक विकास भी हो और कोई मानसिक दबाव भी ना हो।
इस मॉडल में हम जीवन को चार भागों में विभाजित करते हैं। यदि हम इन चारों भागों पर थोड़ा गहराई से ध्यान दें तो हम अपने जीवन को बहुत ही सरलता से सकारात्मक बना सकते हैं। यह 4 भाग इस प्रकार है :

इस मॉडल में जीवन को कुरुक्षेत्र कहा गया है। कुरुक्षेत्र एक शहर का नाम भी है जहां कौरवों और पांडवों के बीच महाभारत का युद्ध हुआ था।कुरुक्षेत्र का हमारे जीवन में भी गहरा अर्थ है, कुरुक्षेत्र को कर्म क्षेत्र भी कहते हैं। जीवन में हमारे द्वारा की जा रही समस्त गतिविधियां या विभिन्न कार्य कलाप जिनमें हम सारा जीवन उलझे रहते हैं और हमेशा महाभारत की युद्ध की तरह संघर्ष करते रहते हैं, हमारा कर्म क्षेत्र ही है। हमारे द्वारा किए जा रहे कर्म या तो हमें धर्म यानी ईश्वर प्राप्ति की ओर ले जाते हैं या फिर हमारे पतन का कारण बन सकते हैं। इसलिए यह जीवन का धर्म क्षेत्र भी है।
हमारे अंदरूनी कुरुक्षेत्र में हर समय एक युद्ध चलता रहता है ।हमारे अंदर कौरव और पांडव लड़ाई करते रहते हैं या यूं कहे की सकारात्मकता और नकारात्मकता में रस्साकशी चलती रहती है ।और इन दोनों में से जिसे भी ज्यादा पोषित करेंगे वही बढ़ते जाएंगे ।
इसे और सरलता से समझे तो कौरव हमारे अंदर के अवगुणों या राक्षसी गुणों का प्रतिनिधित्व करते हैं और पांडव हमारे अंदर के सद्गुणों या दैवीय गुणों का प्रतिनिधित्व करते हैं ।हर इंसान में कुछ सद्गुण या अवगुण दोनों ही होते हैं ।सद्गुण या दैवीय गुणों में करुणा, दया ,सहनशीलता ,शांति ,क्षमा करना, ईमानदारी, सच्चाई ,दूसरों की भलाई के बारे में सोचना ,सबको साथ लेकर चलना ,प्रेमभाव आदि आते हैं । अवगुण या राक्षसी गुणों में नफरत करना , ईर्ष्या करना, लालच, क्रोध ,अत्यधिक आसक्ति ,आलस्य ,निंदा करना ,दूसरों में दोष ढूंढना ,एक दूसरे से तुलना करना ,एक दूसरे को नीचा दिखाना और ऐसे बहुत से नकारात्मक गुण है। यह हम पर निर्भर करता है कि हम दूसरे इंसान में क्या देखते हैं ।
पहले हमें यह समझना होगा कि हम जिस रंग का चश्मा पहनते हैं ।दुनिया हमें उसी रंग की दिखाई देती है। काला चश्मा पहनेंगे तो सब काला दिखाई देगा, सफेद चश्मा पहनेंगे तो सब सफेद दिखाई देगा। और यह हमेशा हमारे चुनाव पर निर्भर करता है कि हम क्या देखना चाहते हैं।
कोई भी व्यक्ति दूसरे व्यक्ति में दोष देखने के कारण यह देख ही नहीं पाता कि कमी स्वयं उसमें भी हो सकती है ।परस्पर दो व्यक्तियों के विचारों में समन्वय ने होने से हम यह नहीं कह सकते कि दोनों में से कोई व्यक्ति सही है या गलत।
एक गलती हम यह भी करते हैं कि हम हमेशा सामने वाले को बदलने की होड़ में लगे रहते है। कभी सामने वाला हमें बदलना चाहता है तो कभी हम सामने वाले को बदलना चाहते हैं ।लेकिन मोह और अहंकारवश बदलता कोई भी नहीं है। और इसी कारण हम हमेशा चिंता ग्रस्त और अवसाद में रहते हैं। जिस कारण हमारा मानसिक स्वास्थ्य हमेशा खराब रहता है और इसके कारण हमारा आध्यात्मिक गतिविधियों में भी मन नहीं लगता ।
जैसे बाहर से बहुत सुंदर और महंगी दिखने वाली गाड़ी का यदि इंजन खराब हो जाए तो हमारा सफर अच्छा नहीं रहेगा ।उसी तरह यदि हमारा ए यानी अंदरूनी कुरुक्षेत्र ठीक नहीं होगा तो हमारी जीवन रूपी गाड़ी का सफर भी अच्छा नहीं होगा ।इसलिए गाड़ी के इंजन का रखरखाव जरूरी है। इसके लिए हमें अपने अंदर के पांडवों यानी सद्गुणों को बढ़ाना होगा ।इसके लिए हमें भगवान की शरण में जाना होगा ।जैसे भगवान की शरण में जाने से पांडवों की जीत हुई थी वैसे ही हम भी भगवान की शरण में जाकर अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं ।
एक इंसान के जीवन का अधिकतर समय अपने परिवार और घनिष्ठ संबंधों के साथ व्यतीत होता है और हर इंसान चाहे वह स्वभाव से जैसा भी हो लेकिन अपने परिवार वालों से बहुत प्यार करता है। परिवार के कुछ ही रिश्ते जैसे माता-पिता , भाई-बहन , पति -पत्नी ,बच्चे ,घनिष्ठ सम्बन्धी और मित्र ।यह सब वह होते हैं जिनसे हम बहुत प्यार करते हैं और कभी-कभी इन्हीं रिश्तो में नफरतें भी आ जाती हैं ।क्योंकि इन्हीं नजदीकी रिश्तो से हमारा कर्मों का लेनदेन ज्यादा होता है।
आजकल तो परिवार में सदस्यों की संख्या कम हो गई है ।हम सब आजकल एकल परिवारों में रहते हैं। और अधिकतर घरों में आधुनिक संसाधन और उपकरण सब होते हैं। फिर भी विडंबना यह है कि परिवारों में आपसी प्रेम और समझ की बजाए तनाव बढ़ गया है। क्योंकि सभी लोग अपनी नौकरियों ,कामकाज और सबसे महत्वपूर्ण अपने मोबाइल फोन पर इतने व्यस्त हो गए हैं कि इसका असर उनके संबंधों और शारीरिक स्वास्थ्य पर भी पड़ रहा है। इसका महत्वपूर्ण कारण यह है कि आजकल सब की प्राथमिकताएं बदल गई हैं। हम सब रिश्तो से ज्यादा पैसे को, स्टेटस को , दिखावे को और सबसे ज्यादा अपने स्वार्थ को अहमियत देते हैं। रिश्तो में सहनशीलता खत्म हो रही है ।आजकल के नौजवान धैर्य नहीं रखते और इसी कारण क्रोध बढ़ गया है। हम सब रिश्तो में एक दूसरे की सराहना करने की बजाय एक दूसरे के दोष ढूंढते हैं ।और समाज में पार्टियों का चलन इतना बढ़ गया है कि जिस कारण एक दूसरे से आगे बढ़ने की होड़ बढ़ती जा रही है। सब आपस में एक दूसरे से बेहतर दिखना चाहते हैं जिस कारण चिंता ,तनाव और अवसाद समाज में बढ़ता जा रहा है ।हमारा जीवन बिल्कुल अनुशासन रहित और प्रकृति के विपरीत हो गया है। और इसका सबसे ज्यादा असर हमारे शारीरिक स्वास्थ्य पर हो रहा है। यह एक चिंताजनक विषय है और इससे उबरने के उपाय हमें ढूंढने ही चाहिए ।सबसे महत्वपूर्ण उपाय तो यह है कि अगर हम अपने (ए) को सुधार ले अर्थात अपने आध्यात्मिक और मानसिक स्वास्थ्य को सुधार ले तो काफी हद तक समस्या हल हो सकती है।
यदि हम अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में अध्यात्मिक गतिविधियों जैसे -मंदिर जाना ,आरती करना ,शास्त्रों को पढ़ना,नाम जप करना ,व्रत करना, आध्यात्मिक कथा -कहानी को सुनना इत्यादि ,यह कुछ ऐसे कार्य हैं जिनसे हमारी नकारात्मकता घटेगी और सद्गुणों का विकास होगा ।इसके अलावा परिवार वालों के साथ ज्यादा समय बिताना ,एक दूसरे को समझना ,एक दूसरे की प्रशंसा करना और संयमित जीवन जीना आदि ।यह कुछ ऐसे उपाय हैं जिनसे हमारा पारिवारिक स्वास्थ्य सुधरेगा और यदि परिवार में सब खुश हैं ,शांत हैं और हम अनुशासित जीवन जीते हैं तो हमारा शारीरिक स्वास्थ्य भी काफी हद तक सुधर जाएगा ।
हर इंसान के जीवन में धन एक बहुत ही महत्वपूर्ण जगह रखता है। यह बात सच है कि धन की महत्वपूर्ण जगह है परंतु आजकल हमने धन को ही जीवन बना लिया है ।हम हर रिश्ते को धन के परिपेक्ष्य से तोलते हैं और करते हैं ।धन को हमने हर चीज से ऊपर रख दिया है ।यह बात बिल्कुल सच है कि जीवन यापन के लिए हमें धन कमाने की जरूरत होती है। अच्छा खाना ,अच्छी सुविधाएं ,अच्छे कपड़े हम सब धन से ही ले सकते हैं ।और आज के आधुनिक समय में तो किसी व्यक्ति की सफलता उसके पास कितना धन- दौलत है इस से नापी जाती है। जिसके पास जितना ज्यादा धन उसे उतना ही सफल माना जाता है।
लेकिन सच तो यह है कि किसी के भी जीवन में धन की महता उतनी होनी चाहिए जितनी कि खाने में नमक की। जिस तरह खाने में नमक ज्यादा होने से खाना कड़वा लगता है और नमक कम होने से खाना फीका हो जाता है उसी तरह धन भी ज्यादा हो जाता है तो चिंताएं ही बढ़ाता है और धन कम होता है तो जीवन निर्वाह मुश्किल हो जाता है।
इसलिए हमें चाहिए कि हम धन इस तरह से कमाए कि परिवार में सुख शांति और सेहत आए ।हम अपने कमाए हुए धन का सदुपयोग करें। हम उस मेहनत से कमाए हुए धन को शराब पीने में, मांस खाने में ,पार्टियों में और फिजूल की शॉपिंग में खर्च करने के बजाय समाज कल्याण के कार्य, धार्मिक कार्यों या किसी असहाय की मदद करके उस धन का सदुपयोग कर सकते हैं ।क्योंकि यदि हम धन को दुखी होकर ,चिंतित मन से सिर्फ अपने इंद्रिय तृप्ति के लिए ,लोभ और असंख्य इच्छाओं को पूरा करने के लिए कमाएंगे तो हम चाहे जितना भी कमाएंगे हमें संतुष्टि कभी नहीं होगी ।हम असंतुष्ट होंगे तो शांति तो कभी मिल ही नहीं सकती ।और जीवन के असली लक्ष्य से भी भटक जाएंगे। और व्यावसायिक जीवन में भी असफलता का सामना करना पड़ेगा ।यदि हम सब नीति, धैर्य, प्रसन्नता से ,सब का आदर करते हुए ,आलस्य त्याग कर, सकारात्मकता और सेवा भाव से अपने सारे कार्यकलाप करें तो स्वत: ही हमारे व्यवसायिक जीवन में सुधार आता है ।परंतु यह तभी संभव होगा जब व्यक्ति पहले अपने( ए )और (बी )में सुधार लाए।
जब व्यक्ति मन तथा इंद्रियों को वश में कर लेता है तब बुरी आदतों पर भी विजय प्राप्त कर लेता है। फल स्वरुप फालतू के खर्चे घट जाने से उसका आर्थिक स्वास्थ्य अच्छा हो जाता है ।
यह जो तीसरी तरह का कुरुक्षेत्र है, इससे इस आधुनिक समय में हर कोई जूझ रहा है। परंतु पता किसी को भी नहीं कि यह क्या है ,यह है- विनाशकारी गतिविधियां ,जो कि हर इंसान दिन के बहुत से घंटे इन गतिविधियों में व्यतीत करता है और कमाल की बात है कि हमें पता ही नहीं होता कि यह विनाशकारी गतिविधियां हैं ।जो कि हमारा बहुमूल्य समय नष्ट कर रही हैं ।ऐसी गतिविधियों जैसे शराब या सिगरेट पीना ,फोन पर गप्पे लड़ाना,निंदा चुगली करना ,अत्यधिक सोना ,खाने पीने पर अत्यधिक समय व्यतीत करना ,टीवी देखना ,सोशल मीडिया पर लगे रहना ,पार्टीज करना ,नाइटक्लब जाना, फिल्में देखना ,अत्यधिक शॉपिंग करना आदि ।इन गतिविधियों से ना तो हमारे ए ,बी या सी का कुरुक्षेत्र सुधरता है बल्कि हम अपना कीमती समय और सकारात्मक ऊर्जा भी इन्हीं कामों में व्यरथ गवां देते हैं और हाथ लगती है सिर्फ चिंता ,निराशा और नकारात्मकता ।और इसके फलस्वरूप शारीरिक, पारिवारिक और आर्थिक स्वास्थ्य भी बिगड़ जाते हैं। और जिस व्यक्ति की आर्थिक हानि हो रही हो, पारिवारिक रिश्ते ठीक ना हो और शरीर से भी स्वस्थ ना हो तो ,उसका मानसिक स्वास्थ्य तो कभी अच्छा हो ही नहीं सकता।
गोलोक एक्सप्रेस का एबीसीडी मॉडल यह सिखाता है कि हमें अपनी डी यानी विनाशकारी गतिविधियों को पहचान कर उन्हें अध्यात्मिक गतिविधियों में बदलना चाहिए जैसे माला जाप करना, शास्त्रों का अध्ययन करना ,मंदिर जाना, सत्संग सुनना ,भक्तों का संग करना ,कीर्तन करना, ध्यान लगाना, तीर्थ यात्रा करना इत्यादि ।इन गतिविधियों को करने से सकारात्मकता बढ़ती है और सद्गुणों का विकास होता है।
जिस व्यक्ति के ए व बी अच्छे होंगे तो यह स्वभाविक है कि वह सी में भी अच्छा प्रदर्शन करेगा और यदि हम डी को भी सुधार ले तो हम इस भौतिक दुनिया में हर जिम्मेवारी को निभाते हुए भी भगवत प्राप्ति कर सकते हैं।